एक दिन मुझसे एक व्यक्ति ने सफ़र के दौरान पूछा- "आप क्या करते हैं?" मेरे मुख से अनायास ही निकल गया - "मैं झारखण्ड सरकार का रिजर्व कर्मचारी हूँ।" झारखण्ड राज्य के शिक्षकों के लिए यह शायद विल्कुल ही सत्य है। यहाँ शिक्षकों को विद्यालय में इस प्रकार से रखा जाता है जैसे वे माध्यम मात्र हों सरकार के लिए किये जाने वाले अन्य कार्यों हेतु । प्रखंड कार्यालय में कर्मी की कमी हो तो शिक्षक को प्रतिनियोजित कर दिया जाता है। भवन निर्माण करना हो तो शिक्षक को कार्यभार प्रदान कर दिया जाता है। इस कार्य के लिए बाल मनोविज्ञान तथा अध्यापन अधिगम उपागम के प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों को जाने क्या सोचकर भवन निर्माण कार्य में लगा दिया जाता है जबकि इस सुकार्य के लिए सरकार के पास बकायदा विभाग उपलब्ध है।
सरकार का जोर विद्यालयों में शिक्षण से ज्यादा मध्याह्न भोजन पर दिखता है। शिक्षकों को मध्याह्न भोजन कीगुणवत्ता के साथ साथ खर्चों के हिसाब-किताब रखने की भी जिम्मेदारी दे दी गयी है। यह कैसा अंधेर है पैसा किसी और के खाते में आये, खर्च कोई करे और हिसाब कोई रखे। अखिल झारखण्ड प्राथमिक शिक्षक संघ के रांची सेमिनार में माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री, झारखण्ड सरकार की शिक्षकों को मध्याह्न भोजन से दूर रखे जाने की घोषणा निश्चय ही स्वागतयोग्य है, परन्तु इस पर जितनी जल्दी अमल किया जाता, झारखण्ड में शिक्षा के हित में यह उतना ही अच्छा होता।
मैं यह सोचता हूँ कि काश! शिक्षक को शिक्षक ही रहने दिया जाता न कि सरकार का रिजर्व कर्मचारी।
Reserve karmachaari nahi " Kolhu ka Bail" kahiye janaab!
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