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Sunday 17 April, 2011

क्या हम सचमुच संगठित हैं ?

आज १७.०४.११ को बोकारो के शिक्षक श्री रामोदय प्रसाद सिंह का आकस्मिक निधन हो गया। पहले भी जमशेदपुर से हमारे मित्र राजा और कुछ साथी हमें छोड़कर जा चुके हैं। अपने ऐसे मित्रों के जाने के बाद हम में से कितने लोग उनके बच्चों और परिवार को देखने या उनका हाल चाल पूछने उनके घर गए हैं? सुख के समय हम सभी पारिवारिक रूप से एक दुसरे के घर जाते हैं, अच्छे बुरे वक्त में काम आने की बातें करते हैं, लेकिन हम सभी अपने दिल पर हाथ रखकर सोंचें कि हम इसे कितना निभा रहे हैं? शिक्षक एकता जिन्दावाद के नारे लगाने वाले हमलोग क्या एकत्रित हैं? यदि हाँ तो अपने दिवंगत मित्रों के बच्चों के प्रति हमारी सम्बेदना क्या है? पीड़ित परिवार को साहस देने में हमने क्या सहयोग दिया है? ये सभी बातें ठंढे दिमाग से सोचने कि हैं। इन्ही सब बातों को सोंच कर शिक्षक कल्याण कोस को आप सबों के बीच लाया गया है। कृपया संघ के वेबसाइट पर जाकर इसे पढ़ें और समझकर इससे जुड़ें। बुरे वक्त में अपने मित्रों के आश्रितों को हिम्मत देने के बाद ही सही मायने में हम आपको एक शिक्षक परिवार कह सकते हैं। हमें आशा है कि हम सभी इस ओर सकारात्मक सोंच के साथ आगे बढ़ेंगे।

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